ज़िंदगी
ज़िंदगी जब किसी ने पूछा क्या हैं ज़िंदगी ? बारिश की पहली बूंद सी निर्मल है ज़िंदगी , सागर मे मचलती कश्ती सी चंचल है ज़िंदगी । कभी आंखो से आँसू तो कभी लबो पे मुस्कान , कभी काजल सी काली तो कभी सूरज की चमकान , जिसके अगले पन्ने की किसी तो खबर नही वही गज़ल है ज़िंदगी । कभी लगती धूप सी तो कभी छांव है है ज़िंदगी , बचपन से जवानी , जवानी से बुढ़ापे का पड़ाव है ज़िंदगी , जिसपे बैठ जीवन के अनजाने सफर पर है हम सब , वही नाव है ज़िंदगी , वही नाव है ज़िंदगी ।। अनिकांत राज़ मंडल