क्योकि लड़के हैं ना हम ।
क्योकि लड़के हैं ना हम । क्योकि लड़के हैं ना हम, हमें दर्द कहाँ होता हैं? बचपन से ही जिम्मेदारियों का बोझ सीने पर रख कर, आंसुओं को भी दुनिया से छिपा कर, आंखों मे सजो कर, हमारा दिल ना जाने कितनी बार रोता हैं। क्योकि लड़के हैं ना हम, हमें दर्द कहाँ होता हैं? पिता का मस्तक ऊँचा करने को, समाज की आन बचाने को , चलें जाते है हम विदेशो मे बस थोड़े पैसे कमाने को, फिर भी भाग्य ना जाने हमारा क्यो सोता हैं? क्योकि लड़के हैं ना हम, हमें दर्द कहाँ होता हैं? माँ के आंचल मे पले पौधे को एक दिन पेड़ बनना पड़ता हैं, जीवन के धूप छाँव को हँस के सहना पड़ता हैं, थक जाएँ पैर अगर फिर भी वो मंजिल की राह जोहता हैं। क्योकि लड़के हैं ना हम, हमें दर्द कहाँ होता हैं? क्योकि लड़के हैं ना हम, हमें दर्द कहाँ होता हैं? ...