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क्योकि लड़के हैं ना हम ।

 क्योकि लड़के हैं ना हम ।  क्योकि लड़के हैं ना हम, हमें दर्द कहाँ होता हैं? बचपन से ही जिम्मेदारियों का बोझ सीने पर रख कर, आंसुओं को भी दुनिया से छिपा कर, आंखों मे सजो कर, हमारा दिल ना जाने कितनी बार रोता हैं।   क्योकि लड़के हैं ना हम, हमें दर्द कहाँ होता हैं? पिता का मस्तक ऊँचा करने को, समाज की आन बचाने को , चलें जाते है हम विदेशो मे बस थोड़े पैसे कमाने को, फिर भी भाग्य ना जाने हमारा क्यो सोता हैं? क्योकि लड़के हैं ना हम, हमें दर्द कहाँ होता हैं? माँ के आंचल मे पले पौधे को एक दिन पेड़ बनना पड़ता हैं, जीवन के धूप छाँव को हँस के सहना पड़ता हैं, थक जाएँ पैर अगर फिर भी वो मंजिल की राह जोहता हैं।  क्योकि लड़के हैं ना हम, हमें दर्द कहाँ होता हैं? क्योकि लड़के हैं ना हम, हमें दर्द कहाँ होता हैं?                                                                                 ...
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ज़िंदगी

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       ज़िंदगी जब किसी ने पूछा क्या हैं ज़िंदगी ? बारिश की पहली बूंद सी निर्मल है ज़िंदगी , सागर मे मचलती कश्ती सी चंचल है ज़िंदगी । कभी आंखो से आँसू तो कभी लबो पे मुस्कान , कभी काजल सी काली तो कभी सूरज की चमकान , जिसके अगले पन्ने की किसी तो खबर नही वही गज़ल है ज़िंदगी । कभी लगती धूप सी तो कभी छांव है है ज़िंदगी , बचपन से जवानी , जवानी से बुढ़ापे का पड़ाव है ज़िंदगी , जिसपे बैठ जीवन के अनजाने सफर पर है हम सब , वही नाव है ज़िंदगी , वही नाव है ज़िंदगी ।।                                                          अनिकांत राज़ मंडल

बचपन का जमाना

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बचपन का जमाना बचपन की कच्ची-सी डोर से बंधा एक अफसाना , मस्ती-मस्ती में तितलियों के पीछे-पीछे दौड़ जाना , याद आता है , अब भी वो बचपन का जमाना।   साथ सबके होने से , नीरस कक्षा में भी बहार का आना , छोटी-छोटी चीजों को भी साथ मिल-बाँट कर खाना , न जाने कहाँ चला गया , वो बचपन का याराना।   खेल-खेल में चोट लगने पर सबके आंखों से आँसू आना , मेरे बिना कहे ही , मेरे मन की दशा उनसब का जान जाना ; ईश्वर की अनुकम्पा से मुझे मिला था , ऐसा याराना।   मेरी खातिर उनसब का औरों से लड़-भीड़ जाना याद आता है , अब भी वो बचपन का जमाना , याद आता है , अब भी वो बचपन का जमाना।।                         अनिकांत राज़ मंडल

अब चलना होगा

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अब चलना होगा अब चलना होगा ।  आशाओं की छाँव में परिश्रम की धूप में अब जलना होगा , घर की दहलीज़ से ममता के आँचल से अब निकालना होगा ।  अब चलना होगा । तूफानों से यारी करके दीपक की तरह जलना होगा , मातृभूमि का शीश उठाने खुद से खुद को अवगत कराने बढ़ाना होगा । अब चलना होगा ।  निरंतर प्रयास से प्रभु के आशीर्वाद से ,   मंजिल को पाने को पर्वत का शीश झुकाने को अब मचलना होगा । अब चलना होगा , अब चलना होगा ।                                अनिकांत राज़ मंडल

My Oasis My Mom

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My Oasis My Mom My definition, my soul and my home, She was not anyone as she was my mom. You gave me birth from your womb, You gave me feather to fly and a condition to aboom. She was not anyone as she was my mom. Suffering from the world’s heat, You thought me to run on own feet, She saw me pleasure-sorrow and it’s loom . My definition, my soul and my home, She was not anyone as she was my mom. Now, I am obligate, feeling like a nomad. Without you the world is a strom,  The last word, I Wanted to tell you, I love you Mom, I love you Mom!                                                                          Anikant Raaz Mand...

Blooded Earth

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Blooded Earth The nature is showing its own rage,  The world is now in the cage.  We blame nature, for this massacre, But the responsible is backstage.  Many have died and many will die. Nature has called us in a screaming sound, We did not heard as we were engage, Corona is not all it is only a page.  If we will more heartless it will be more savage.  Blooded Earth is asking for its justice, It a time to keep our promise. Before becoming all as black as ash We will look after nature, As we are talking pledge, As we are talking pledge!                                               Anikant Raaz Mandal