बचपन का जमाना
बचपन का जमाना बचपन की कच्ची-सी डोर से बंधा एक अफसाना , मस्ती-मस्ती में तितलियों के पीछे-पीछे दौड़ जाना , याद आता है , अब भी वो बचपन का जमाना। साथ सबके होने से , नीरस कक्षा में भी बहार का आना , छोटी-छोटी चीजों को भी साथ मिल-बाँट कर खाना , न जाने कहाँ चला गया , वो बचपन का याराना। खेल-खेल में चोट लगने पर सबके आंखों से आँसू आना , मेरे बिना कहे ही , मेरे मन की दशा उनसब का जान जाना ; ईश्वर की अनुकम्पा से मुझे मिला था , ऐसा याराना। मेरी खातिर उनसब का औरों से लड़-भीड़ जाना याद आता है , अब भी वो बचपन का जमाना , याद आता है , अब भी वो बचपन का जमाना।। अनिकांत राज़ मंडल